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भारत और चीन: एक जहाज के आर-पार


Image Credits: The New York Times



आज 21वीं सदी में जब भारत एक वैश्विक शक्ति बनने के लिए ऐन-केन-प्रकारेण अग्रसर हो रहा है, तब हमें अपने पड़ोसी देश श्रीलंका में आकर तेल भरवाने वाले जहाज से भला क्या समस्या हो सकती है? हमने हाल ही में अपने अतीत के 'साहबों' को पछाड़कर, वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद के क्रम में पांचवां स्थान हासिल किया। ऐसे में हम प्रगति तो कर ही रहे हैं पर क्या कुछ है जो अब भी हमें हानि पहुंचा सकता है? यह विषय चिंतनीय है।


बात उठी कि अगस्त के शुरूआत में चीन का युआन वांग 5 श्रीलंका के हंबनटोटा में तेल भरवाने के लिए आना चाहता है, कुछ विलंब के उपरांत हमारे सामने 16 से 22 अगस्त की तारीख आती है। श्रीलंका सीधे तौर पर उसे अनुमति देने के उपरांत हाथ बढ़ाकर आगमानी करने को तैयार होता है। भारत अपनी क्षेत्रीय शांति का हवाला देते हुए श्रीलंका से सीधे तौर पर कहता है कि अनुमति नहीं देनी चाहिए। जहां यह जहाज हमारी संवेदनशील जानकारियों को एकत्रित कर सकता है, वहीं श्रीलंका में अपनी आर्थिक स्थिति का फायदा उठाकर चीन भारत के लिए खतरा पैदा कर सकता है। अतीत में भी एक बार झांक लें तो सन् 1962 के पहले भी 'हिंदी चीनी भाई-भाई' के नारे सब ओर विद्यमान थे। उस समय सन् 1962 के युद्ध में भी हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री को भी यह विश्वासघात का कदम ही लगा था, जिससे सामरिकता पर औचक खतरा आन पड़ा। चाहे सेनाध्यक्ष की नियुक्ति हो या चीन पर अंधा विश्वास, हमें उस दौर में ये सब भारी पड़ा। सन् 1967 में सिक्किम सीमा पर होने वाली झड़पें भी इसी कड़ी में जुड़ीं। पर इस बार जवाब सटीक दिया गया ।


आज जब यह जहाज दक्षिणी चीन सागर को पार कर हिंद महासागर के उत्तरी भाग में स्थित श्रीलंकाई द्वीप के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचता है तो संशय होना स्वाभाविक है। यह बंदरगाह स्वयं में ही एक कूटनीतिक इतिहास सजोए हुए है। चीन का हमबंटोटा बंदरगाह की व्यवस्था में ऊपरी हाथ अपने आप में ही स्थिति को बहुत हद तक विदित कर ही देता है। क्या ऐसे एकतरफा सरकारी निर्णयों का लिया जाना वैश्विक खतरे का अंदेशा तो नहीं देता? यहां पर समझने की आवश्यकता है कि अगर श्रीलंका चीन के दबाव में ऐसा कर रहा है तो श्रीलंका की स्वायत्तता के नाम पर शेष केवल शून्य बचेगा। यहां यह भी जरूरी है कि श्रीलंका का निर्णय अगर चीन के लाभ का पोषक है तो यह संभव नहीं की वो उसके दबाव में ही लिया गया हो। परंतु इस बात का कहा जाना कि श्रीलंका ने ये निर्णय अपनी पूर्ण स्वायत्तता से लिया हैं, इसकी संभावना नगण्य जान पड़ती है। एक बार को बृहद परिपेक्ष में देखें तो विश्व के प्रत्येक देश के निर्णय किसी न किसी देश को लाभ प्रदान कर सकते हैं, ऐसे में लाभ पहुंचाने मात्र के कारण उस देश की स्वायत्तता पर प्रश्न भी नहीं खड़ा किया जा सकता। पर यह तर्क श्रीलंका के परिपेक्ष में कार्य नहीं करता। भारत का पक्ष न मानना और अपना निर्णय चीन के पक्ष में लेना उसकी निर्णय शक्ति हो सकती थी पर यहां यह सूत्र लागू नहीं होता। श्रीलंका न तो ऐसे राजनीतिक निर्णय ले पा रहा है और न ही हंबनटोटा के हालात ऐसे हैं कि श्रीलंका सांस लेना महसूस कर सके। यहां की राजनीतिक और आर्थिक विषमताओं के बीच श्रीलंका चीन के समक्ष खड़ा होगा, यह मानना अंडमान या पैदल जाने के बराबर है।


श्रीलंका ने सीधे तौर पर यह कहकर अनुमति दे दी कि जहाज वहां पर सिर्फ तेल भरवाने के लिए रुकेगा पर कुछ पहलुओं पर से धुंध छंटती दिख नहीं रही है। पहले तो चीन का यह कहना कि यह कोई निगरानी करने वाला जहाज नहीं है, मानने योग्य तर्क नहीं लगता है। युवान वांग के श्रृंखला वाले जहाज चीन की नौसेना के ही है, इन्हें चीनी नौसेना के बेड़े में शामिल किया गया था। ऐसे में किसी दूसरे पटल पर खिसियानी हंसी सिर्फ बात पलट सकती है पर उसे छिपा नहीं सकती। इसके ऊपर लगे रडारों को अगर उनके अनुसार अनुसंधान के यंत्र भी मान लिया जाए तो उनका लक्ष्य सफल नहीं होता। चीन से आया एक जहाज युवान वांग 5 हंबनटोटा आकर तेल भरवाता है और वापस चीन की ओर लौट जाता है, ऐसे में हम उससे कैसे अनुसंधान की इच्छा रख सकते हैं। उस बंदरगाह का चीन की शह में होना उन्हें अनकहा फायदा देता है जो कि उन्हें अपने मन की करने से रोक नहीं सकता।

चाणक्य जी भी अर्थशास्त्र में 'कोष मूलो दंडः' की अवधारणा हमारे समक्ष रखते हैं। चीन की दी हुई आर्थिक मदद भले ही श्रीलंका को तोड़ रही हो पर उसे इस राजनीतिक संकट के बीच प्राणवायु प्रदान कर रही है। तभी श्रीलंका का शांत रहना और चीन की हां में हां करना मूर्तरूप ले रहा है। अगर वह भारत की मान भी ले तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ओर से मिलने वाला पैकेज भी चीन रुकवा सकता है। 7 बिलियन डॉलर का ऋण वह चीन को आसानी से नहीं चुका पाएगा। यहां पर चीन उन सब मददों को नजरंदाज कर रहा है जोकि इस संकट के समय में भारत ने दी हैं।


अब जब हम हंबनटोटा की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो यह सर्वविदित है कि संपूर्ण दक्षिण भारत उनके क्षेत्र में होगा। ऐसे में अगर नाम गिनाऊं तो भारतीय स्पेस एजेंसी का सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा में है जोकि आंध्र प्रदेश में स्थित है। दक्षिणी नौसेना कमान का मुख्यालय केरल के कोच्चि में तथा दक्षिणी वायुसेना का मुख्यालय तिरुवनंतपुरम में है। पूर्वी नौसेना कमान तथा एक बृहद बंदरगाह का शहर विशाखापट्टनम है। मंगलुरु, कोच्चि, चेन्नई जैसे महत्वपूर्ण बंदरगाह भी यहीं हैं। अंडमान में भारत की ट्राई-सर्विसेज़ कमान का मुख्यालय है जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है। कुंडाकोनम और कलपक्कम परमाणु संयत्र तो ऊर्जा छेत्र की जीवनरेखा हैं ही। क्या इतने के बाद भी उचित होता कि हम अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतन न करें? विश्व का कोई देश अपनी आंतरिक सुरक्षा में ऐसे व्यवधान नहीं सह सकता। चूंकि बात ऐसी थी और सामने चीन, तो भूल नहीं की जा सकती। इसी कारण ये बात इतनी उठी कि क्या तेल भरवाने मात्र के लिए चीन अपना एक जहाज हंबनटोटा में रोकेगा? खैर उसी हंबनटोटा के पास की तेल आपूर्ति संस्था और हवाई अड्डे पर भारत का प्रभुत्व कूटनीतिक रूप से प्रशंसनीय है।


भारत का कद निर्विवादित रूप से बढ़ता है और हमारी बात विश्व पटल पर सुनी जा रही है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों का समीकरण तो सदैव बदलता रहता है। इस कारण हमें स्वयं उत्पादन पर ध्यान देना होगा। हमारे पास विदेश सेवा के अधिकारियों की एक अच्छी श्रृंखला है तो साथ ही एक शानदार मिलिट्री भी है। हमें जहां ध्यान देना होगा कि सैन्य उत्पादन में बड़ी चीजों का निर्माण भी यहीं हो। जैसे कि एक अच्छी मिसाइल के जखीरे से हम सुशोभित हैं। हाल ही में भारतीय नौसेना में एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत जलावतरित हुआ तो वहीं हम 2008 में कावेरी इंजन को तेजस प्रोजेक्ट से अलग कर चुके थे। हम निश्चित रूप से प्रगति कर रहे हैं पर चीन की बढ़त को देखकर सचेत हो जाना ही उचित लगता है।


जैसे सीरिया और धीरे-धीरे पूरा मिडल ईस्ट अमेरिका और रूस के बीच की कड़वाहट बना, भारत यह कदापि नहीं चाहेगा कि श्रीलंका उसके और चीन के बीच गेहूं में घुन की तरह पिस जाए। हम सदैव शांति के समर्थक रहे हैं और चीन से भी इसी की आशा रखते हैं। बाकी भविष्य तो दोनों देश अपने राजनीतिक कदमों के द्वारा ही तय करेंगे।


 

By Utkarsh Mishra

Hello everyone! This is Utkarsh Mishra currently in the second year of Philosophy honours course. I take keen interest in knowing about things and am an amateur in articles and papers. Here is my piece which throws light on a ship that came to Sri Lanka and became a contention among the two developing countries.

 

Bibliography


https://www.npr.org/2022/08/19/1118113095/sri-lanka-china-ship-hambantota-port#:~:text=Sri%20Lanka%20and%20China%20call,to%20track%20satellites%20and%20missiles.&text=via%20Getty%20Images-,China's%20vessel%2C%20the%20Yuan%20Wang%205%2C%20arrives,at%20Hambantota%20port%20on%20Aug

https://www.bbc.com/news/world-asia-62558767

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Yuan_Wang-class_tracking_ship


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