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लद्दाख मांगे लोकतंत्र


Credits- Linkedin
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        यह लेख केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख वासियों की मांग को लेकर विस्तृत रूप से लिखा गया है। लद्दाख के पर्यावरणीय अस्तित्व एवं सांस्कृतिक विविधता को बरकरार रखने के लिए सोनम वांग्चुक एवं उनके साथियों द्वारा शांतिपूर्वक भूख हड़ताल एवं सत्याग्रह द्वारा लोकतंत्र की मांग इसके केंद्र में है।


लद्दाख यानी ‘ऊंचे दर्रों की भूमि’ पर्वतराज हिमालय की गोद में बसा भारत के उत्तरी भू-भाग का वह अभिन्न हिस्सा है जो कि सामरिक, आर्थिक, पर्यावरणीय एवं  साँस्कृतिक दृष्टिकोण से संवेदनशील इलाका  है और इन दिनों सुर्खियों में भी है। आमिर खान की थ्री इडियट्स फ़िल्म से सुर्खियों में आए प्रसिद्ध शिक्षक, इंजीनियर एवं वर्तमान में पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांग्चुक, लद्दाख के पर्यावरणीय अस्तित्व एवं सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण, संवर्धन एवं लोकतंत्र की मांग हेतु लगातार 21 दिनों के भूख हड़ताल पर थे।(जिसे उन्होंने क्लाइमेट फास्ट के रूप में मान्यता दी है।) उनकी मांगों को जानने से पहले हमें यह जानने की आवश्यकता है की इस भूख हड़ताल के केंद्र में क्या है? लद्दाख जो कि प्राचीन काल से ही एक स्वतंत्र राज्य के रूप में  स्थिर रहा है, इसकी जब जब केंद्रीय सत्ता कमजोर पड़ी है, तब तब स्थानीय शासकों ने इस पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया, आजादी के पहले यह डोगरा रियासत के अंतर्गत आती थी जो महाराजा हरि सिंह जी के वंश द्वारा शासित थी। आजादी के बाद यह भारत के अंतर्गत आने वाले जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा बना। यदाकदा इसको अलग राज्य के रूप में स्थापित करने की मांग उठती रही है, दरअसल इसकी कहानी 5 अगस्त सन् 2019 से शुरू होती है जब भारत सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त कर 31 अक्टूबर 2019 को जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख को दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में मान्यता प्रदान की गई, जिसकी  मांग लद्दाखवासी लंबे अरसे से करते आए हैं। अनुच्छेद 370 के रहते हुए, केंद्र सरकार के अधिकांश कानून सीधे लद्दाख में लागू नहीं हो सकते थे, जिसके वजह से लद्दाख के आर्थिक विकास और बुनियादी ढांचे की गति प्रभावित होती थी। इसके अतिरिक्त जम्मू और कश्मीर की सरकार का नियंत्रण लद्दाख पर अधिक था और स्थानीय विकास पर केंद्र सरकार का प्रभाव सीमित था। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, जिस कारण अब केंद्र सरकार की योजनाएं और कार्यक्रम बिना किसी रुकावट लद्दाखवासियों तक पहुंच सकती है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद अब लद्दाख में बाहरी निवेश की संभावना बढ़ी है और पर्यटकों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जिससे क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं। केंद्र सरकार के इस महत्वपूर्ण फैसले से लद्दाखवासियों में एक आशावादी दृष्टिकोण जगा जिससे उन्हें लगा कि लद्दाख को जल्द ही विधानसभा युक्त केंद्र शासित प्रदेश के रूप में मान्यता प्रदान की जाएगी, जिसकी घोषणा बाकायदा केंद्र की सरकार यानी भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्रों में की थी (लोकसभा चुनाव 2019 एवं लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद 2020 के चुनाव)। लेकिन धीरे- धीरे समय बीतता गया और उनकी आशाओं पर पानी फिरता गया, तकरीबन तीन लाख  की आबादी वाला यह केंद्र शासित प्रदेश अंत में  प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांग्चुक के नेतृत्व में लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बातों को रखने एवं भूख हड़ताल एवं सत्याग्रह का आह्वान करने को मजबूर हुआ। दिल्ली एवं भारत के अन्य इलाकों में जब दिन गुनगुनी धूप से युक्त है वहीं लद्दाख में अभी भी ठिठुरन बरकरार है, इस ठिठुरती सर्दी में भी लद्दाख गर्म है- लोकतंत्र की पुकार हेतु, सामाजिक न्याय की गुहार हेतु।

       

अब हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि लद्दाखवासियों की वे कौन सी प्रमुख मांगे हैं जिसका केंद्र सरकार, बकायदा अपने घोषणा पत्र में जिक्र करने के बाद भी उन्हें लेकर असंवेदनशील रवैया अख्तियार कर रही है -

1)जम्मू कश्मीर की तरह लद्दाख को भी विधानसभा प्रदान करना ।

2) लद्दाख को भी छठी अनुसूची में शामिल करना ।

3) लद्दाख में एक और संसदीय सीट बढ़ाना ।

4) पब्लिक सर्विस कमीशन (लोक सेवा आयोग) को लद्दाख में बहाल करना ।

     

  हम बारी-बारी से इन चारों मांगों को समझने का प्रयास करते हैं। पहली मांग के रूप में जम्मू -कश्मीर की तरह लद्दाख को भी विधानसभा प्रदान करना है, ताकि वे अपने प्रतिनिधि विधानसभा में भेजें एवं लोकतंत्र की प्रक्रिया में सफलतापूर्वक शामिल हो सकें। यह न सिर्फ एक नैतिक मांग है अपितु एक तरफ हम जहाँ विश्व के वृहत्तम लोकतंत्र के रूप में वैश्विक मंचों पर अपने आप को प्रदर्शित करते हैं तो यह हमारे लिए अनिवार्य हो कि हम सत्ता के विकेंद्रीयकरण में विश्वास रखने वाले लोकतंत्र के रूप में अपनी भूमिका बरकरार रखें। लद्दाख जो कि क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा केंद्र शासित प्रदेश है तथा जिसकी जनसंख्या वर्तमान में 3 लाख से ज्यादा है, विधानसभा युक्त केंद्र शासित प्रदेश बनने के लिए तैयार है। इनकी दूसरी मांग के रूप में लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना है। आपको बताते चलें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 और 275 में छठी अनुसूची का उल्लेख है जिसके तहत जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष अधिकारों का प्रावधान है। वर्तमान में इसके अंतर्गत पूर्वोत्तर भारत के चार राज्य- असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम आते हैं। इसके तहत कई प्रकार के कानूनी, न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकार राज्यों को प्राप्त हैं, जिसके अंतर्गत इनमें स्वायत्त जिला परिषद का गठन भी शामिल है। यह लद्दाख के पर्यावरणीय अस्तित्व को बचाने के लिए भी अहम है क्योंकि लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने एवं केंद्र द्वारा सीधे नियंत्रण के कारण विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ें कई प्रकार के पूंजीपतियों एवं निजी कंपनियों  की नजर लद्दाख पर टिकी हुई है, जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अंधाधुंध तरीके से लद्दाख के संसाधनों का दहन करने का प्रयास करेंगे जिसमें सरकार का मूक समर्थन जग ज़ाहिर है। अतः लद्दाख के संवर्धन एवं संरक्षण हेतु छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग प्रासंगिक जान पड़ती है, जिसमें लद्दाख के लोग यह तय करेंगे कि विकास का पैमाना क्या हो और इसकी गति क्या हो।

  


Credits- The Hindu
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लद्दाख वासियों की तीसरी मांग के रूप में लद्दाख में एक संसदीय सीट बढ़ाना शामिल है, वर्तमान में लद्दाख से लोकसभा में मात्र एक प्रतिनिधि शामिल है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के सबसे बड़े केंद्र शासित प्रदेश एवं संवेदनशील इलाके के, लोकसभा की संसद में, प्रतिनिधित्व को बढ़ाना ही लोकतंत्र को सुदृढ़ करेगा ताकि विभिन्न प्रकार के ऐसे समुदायों को लोकसभा में प्रतिनिधित्व मिल सके।

         

लद्दाख वासियों की चौथी एवं अंतिम मांग के रूप में लद्दाख में पब्लिक सर्विस कमीशन को बहाल करना शामिल है। आपको बताते चलें कि लद्दाख जब जम्मू कश्मीर राज्य के अंतर्गत था तब जम्मू कश्मीर लोक सेवा के अंतर्गत उसके युवा अभ्यर्थी नौकरशाही में अपनी सेवा प्रदान करते थे, लेकिन जब से 2019 में एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख अस्तित्व में आया है, तब से लद्दाख के युवा अभ्यर्थी न तो जम्मू कश्मीर लोक सेवा के अंतर्गत परीक्षा दे पाने में सक्षम हैं और न ही अपने केंद्र शासित प्रदेश में, लोक सेवा आयोग (पब्लिक सर्विस कमीशन) की व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है। 


इन चार मांगों को लेकर के लद्दाख वासी अपनी आवाज़ को बुलंद तरीके से उठा रहे हैं। सोनम वांग्चुक जो कि इन आवाजों को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं, अपनी भूख हड़ताल के हर दिन की शुरुआत में और उसकी समाप्ति में वीडियो संदेश के माध्यम से अपने अनुभवों को साझा कर रहे हैं और केंद्र सरकार से उनके द्वारा किए गए वादों को पुनः याद दिला रहे हैं। सत्य एवं धर्म के मार्ग पर चलने की सरकार को नसीहत दे रहे एवं लद्दाख के पर्यावरणीय अवस्थिति के संरक्षण हेतु अपनी बात शांतिपूर्वक रख रहे हैं। उनके साथ कई लद्दाखवासी एवं भारत के विभिन्न भू-भागों से आए लोगों के द्वारा भी उन्हें समर्थन प्राप्त हो रहा है। उनका यह सत्याग्रह का तरीका देश से अलगाव की ओर नहीं अपितु देश के अंतर्गत रहते हुए अपनी मांगों को जायज़ ठहराने और उसे प्राप्त करने का है। हालांकि, सरकार से उस दौर की वार्ता भी चली है लेकिन यह निष्फल रही और अभी भी उनका क्लाइमेट फास्ट जारी है। लद्दाख लोकतंत्र मांग रहा है और कुछ नहीं, न इससे ज्यादा न इससे कम। लद्दाख मांग रहा है लोकतंत्र!

 

By Brijlala Kumar (Rohan)

बृजलाला कुमार द्वितीय वर्ष हिंदी (प्रतिष्ठा), हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैँ। वे एक युवा कवि, वक्ता, शायर, लेखक, ब्लॉगर, मोटिवेशनल स्पीकर एवं शिक्षक हैँ। साथ ही, वे एक समाजसेवी और गांधीवादी विचारक भी हैँ।




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Guest
Jan 07
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सुंदरपयास

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