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Writer's pictureHindu College Gazette Web Team

हरप्पा


Image Credits: The Better India


वर्ष 1827 की बात है, ब्रिटिश फौज में एक फौजी होता था जेम्स लुइस उर्फ चार्ल्स मेसन। जेम्स को पुराने सिक्के इक्ट्ठा करने का शौक था, इस सिलसिले में वह पंजाब के कुछ हिस्सों में खोदाई कर रहा था, इस लिए उसने फ़ौज की नौकरी भी छोड़ दी थी। इसी सिलसिले में वह 1829 के आस पास वह मोंटगोमरी पहुँचा। आज के हिसाब से यह पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब का साहिवाल जिला है। मोंटगोमरी से 27 किलोमीटर दूर हड़प्पा में मेसन को किसी पुराने सहर के अवशेष मिले, यह शहर किसने बनाया यह कितना पुराना था इसका इल्म स्थानीय लोगों को भी नहीं था। मेसन ने इस शहर का ब्यौरा अपनी डायरी में दर्ज किया और इंग्लैंड लौट गया। वहाँ पहुँचकर उसने एक किताब लिखी जिसमें उसने अफगानिस्तान, बलूचिस्तान आदि में अपने यात्रा वृतांत लिखे जिसमें उसने हड़प्पा में मिले अवशेषों का भी जिक्र था। यह वह दौर था जब मिस्र और मेसोपोटामिया सभ्यता के नए-नए राज उद्घाटित हो रहे थे।


फ्रांस ने मिस्र पर कब्जा कर लिया था और वहाँ खुदाई कर मिस्र की सभ्यता का पता लगा रहा था। यह खबर पूरे यूरोप में जंगल की आग की तरह फैल रही थी और ब्रिटिश अफसरों को भी आर्कोलॉजी का चस्का चढ़ने लगा था। वर्ष 1858 में ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का शासन अपने हाथों में लिया और इसी साल स्थापना हुई आर्कोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ASI की। ए. एस.आई. का पहला डायरेक्टर एलेक्जेंडर कनिंघम को बनाया गया। कनिंघम ब्रिटिश फ़ौज में एक अफसर थे और उन्हें शुरू से ही आर्कोलॉजी का शौक था। मेसन की किताब पढ़ कर कनिंघम ने हड़प्पा का दौरा किया, कानिंघम बौद्ध स्तूपों की खोज कर रहे थे इसलिए उन्हें लगा की यह कोई खोया हुआ बौद्ध शहर होगा। यहाँ खुदाई के दौरान कनिंघम को पत्थर की मोहरें भी मिलीं, सरल शब्दों में ठप्पा लगाने वाली सीलें जिनका प्रयोग हड़प्पा काल में होता था। कनिंघम ने कयास लगाया कि ये 1000 साल पुरानी कोई सभ्यता है।


वर्ष 1904 में जॉन मार्शेल ने ए एस आई के डायरेक्टर के पद की कमान संभाली। उन्होंने हड़प्पा की खुदाई का काम दयाराम साहनी को दिया। इसी काल में सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो नाम का एक शहर खुदाई में मिला, जिसकी खुदाई की जिम्मेदारी डॉक्टर भंडारकर एवं आर डी बनर्जी हो दी गई। 1923 में बनर्जी ने-ने अपने रिपोर्ट में शहर को अति पुरातन शहर बनाया बताया। एवं दर्ज किया दोनों शहरों में कुछ विशेष समानताएँ। वर्ष 1927 में मार्शल लंदन में एक मैगजीन में यह रिपोर्ट छपवाई कि हमने एक पुरातन सभ्यता की खोज की है। 1925 से 1931 तक हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई का काम चला जिस दरमियान कई सारे जीवन उपयोगी वस्तुएँ एवं नर कंकाल बरामद किए गए आने वाले समय में घागरा हाकर नदी के तट पर भी खुदाई की गई। कुछ लोगों का मानना है कि पौराणिक मान्यताओं में इसी नदी को सरस्वती नदी कहाँ गया है। 2002 तक में हड़प्पा सभ्यता की 1000 से अधिक साइट्स की खोज हुई। सभ्यता का नाम सिंधु घाटी सभ्यता रखा गया रखा गया किंतु सर्वप्रथम हड़प्पा की खोज होने के कारण कुछ लोग इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के 5 प्रमुख शहर है मसलन हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा राखीगढ़ी एवं घनेरीवाला। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में 7000 से 550 ईसा पूर्व, एक शहर मेहरगढ़ की खोज हुई यह माना जाता है मेहरगढ़ न्यूलिटिक पीरियड का शहर है। सरल भाषा में नवपाषाण युग यानी कि वह समय जब लोगों ने खेती करना प्रारंभ किया था। इसे पूर्व हड़प्पा काल भी कहा जाता है क्योंकि इस काल में सभ्यता की शुरुआत नहीं हुई थी। केवल लोग छोटी-छोटी बस्तियों में रहते थे। ईशा से 3000 वर्ष पूर्व जब पहाड़ों से लोग मैदानों की तरफ़ आए तब सिंधु घाटी सभ्यता पनपी। सिंधु और घघर खाखरा सहित बाकी नदियों का किनारा बहुत उपजाऊ था इसलिए नदियों के किनारे लोगों ने खेती करना शुरू किया। इस समय तक लोगों ने मटर, तिल और कपास की खेती शुरू कर दी थी। इसके बाद 2600 ईसा पूर्व आते-आते नगरों की शुरुआत हुई। यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि किसी सभ्यता के इतनी शुरुआती दौर में लोग नगरों की सुरक्षा के लिए एवं नगरों के भीतर अनाज के भंडारण के लिए बड़ी-बड़ी चारदीवारियाँ बनाते थे। समय के साथ-साथ बौद्धिकता और कलाओं का संगम विकास इस काल में देखने को मिलता है। 2600 ईसा पूर्व से लेकर 1920 अपूर्व तक के समय को सिंधु घाटी सभ्यता का स्वर्ण काल माना जाता है। अब तक मिट्टी के बर्तन बनाए जाने का प्रारंभ हुई हो चुका था।


मोहनजोदड़ो समेत अन्य साइट्स से जो अवशेष मिले हैं उससे इस काल के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलता है। पुरातत्वविदो के अनुसार दुनिया में 4 स्थानों में सभ्यता स्वतंत्र रूप से उपजी। जिसमें मेसोपोटामिया, सिंधुघाटी सभ्यता, मिस्र और चीन की सभ्यता उल्लेखनीय है। सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे खास बात यह है कि यह सबसे बड़ी और सबसे बड़े इलाके में फैली हुई सभ्यता थी। पुरातत्वविदो का ऐसा मानना है कि अपने शीर्ष में सिंधु घाटी सभ्यता का फैलाव लगभग 1000000 किलोमीटर मे था। इसमें लगभग 5000000 लोग रहते थे, ऐसा अनुमान लगाया जाता है। अलग-अलग हड़प्पन गाँव एक मुख्य नगर के इर्द-गिर्द बनाए गए थे, एवं नगर का निर्माण भी एक विशेष प्लानिंग के तहत किया गया था। हर शहर के 2 हिस्से होते हैं एक ऊपरी गढ़ और एक निचले गढ़ । ऊपरी गढ़ में शाही ईमारतें होती थीं जिसे हम कैपिटल भी बोल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर गोदाम जहाँ अनाजों का भंडारण किया जाता था। ऊपरी गढ़ को जमीन से कुछ ऊपर बनाया जाता था जिसकी सुरक्षा के लिए चार दिवारी भी होती थी। इसके अतिरिक्त निचला शहर भी चार दिवारी के घेरे में होता था जहाँ आम जनता रहती थी। इसकी सुनियोजितता का अनुमान इस बात से ही किया जा सकता है इसका निर्माण ब्लॉक के रूप में किया गया था। ब्लॉक के बीच से सड़के निकाली हुई थी जिनकी चौड़ाई लगभग 10 मीटर के आसपास होती थी। लगभग दो बैल गाड़ियों की जगह के निकलने के बराबर। फर्ज कीजिए कि आज के समय में टू लेन रोड जैसी व्यवस्था। इसके अतिरिक्त शहरों के बीच से भी गलियाँ निकलती थी। उसकी उम्दा प्रणाली का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इसे बनाने के लिए ईंटो का प्रयोग किया गया था। जहाँ शहरों की नीव में पकी हुई भट्ठी में पकी हुई थी वही तिवारी बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा-हड़प्पा सभ्यता में प्रयुक्त ई दो की गुणवत्ता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है आसपास के ग्रामीणों एवं कांट्रेक्टर ने ईट चोरी कर के अपने घरों में लगाना शुरू कर दिया। नगरों की नगरों की चारदीवारी बनाने में विशेष ध्यान दिया जाता था, विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि केवल मोहनजोदड़ो और धोलावीरा की नींव बनाने में 10000 मजदूरों को 400 दिन तक काम करना पड़ा होगा। यह चार दिवारी या यह चार दिवालिया दुश्मन से बचने की नहीं बल्कि इसलिए बनाई जाती थी ताकि नदी का पानी अंदर ना आ सके इस सभ्यता कि लोगों की बुद्धिमता को इस बात से ही अनुमान किया जा सकता है कि अंदाज अनाजों का भंडारण ऊपर के कदमों में किया जाता ताकि बाढ़ के पानी से भी अनाज बचे रह सके एवं खराब ना हो। इस सभ्यता की सभ्यता की उल्लेखनीय बात यह भी है कि इसमें राज महल जैसा कोई भी स्ट्रक्चर दिखाई ढांचा दिखाई नहीं देता जिससे यह बात स्पष्ट होती है कि सभ्यता में रहने वाले सभी लोग लगभग एक ही प्रकार का जीवन जीते थे। यह विशेष रूप से बताने योग्य है कि काश कि किसी भी सभ्यता में ऐसी विशेषता देखने को नहीं मिलती है। मिस्र में फेरो होते थे जिनके लिए विशेष इमारतों का निर्माण किया जाता था। जैसे पिरामिड जैसे स्ट्रक्चर बताते हैं कि विशेष लोगों के मरने पर भी विशेष इमारतों की व्यवस्थाएँ की जाति एवं उन्हें उपचार किए जाते थे। लिच्छवी थी राजा की जो छवि थी उसे इन सभ्यताओं में मिस्र जैसी सभ्यताओं में इंसान न मान के भगवान ही माना जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता और इस काल की अन्य सभ्यताओं में और भी कई सारे बुनियादी अंतर है मसलन अन्य सभ्यताओं में राजा जैसी एक ही राज की होती थी जिसके अंतर्गत कानून व्यवस्था एवं राज्य की व्यवस्थाएँ होती थी अभिजात्य वर्ग एवं सामान्य वर्ग के रहन-सहन की शक्तियों में एक खास अंतर भी होता था इसी प्रकार हर राज्य का एक धर्म भी निश्चित था और धर्म की भी निश्चित है रात की होती थी जिस प्रकार पुरोहितों के लिए विशालकाय मंदिर एवं भरे भवन बने हुए होते थे विशालकाय संरचनाओं का निर्माण के लिए किया जाता था। अधिकतर भी होती थी और-और गुलामी जैसी प्रथाओं के निशान में मिलते हैं जबकि सिंधु घाटी सभ्यता में ऐसा कुछ खैरात गीत दिखाई नहीं देती विशेष रूप से किसी धर्म या राज्य व्यवस्था की है रात की नहीं दिखाई देती। नहीं ऐसी किसी चीज की सबूत दिखाई देते कौन मेरा सिंधु घाटी सभ्यता में सर्वाधिक महत्त्व पानी और सफाई को दिया जाता था सिंधु घाट सिंधु घाटी सभ्यता की पहचान उसके नानी और सीवर प्रणाली से भी होती है हर व्यक्ति के बाथरूम में टाइल लगती थी दीवार और दूसरों को तार लगाकर व्हाट्सएप ग्रुप बनाने की तकनीक का प्रयोग सिंधु घाटी सभ्यता में किया जाता था क्योंकि नीचे बनी ना क्यों से पानी घरों से बाहर निकलता था एवं शहर की नालियों से होता हुआ यह पानी शहर के बाहर निकल जाता था इस काल के किसी दूसरे सभ्यता में शिल्पकार और सीमा जी ऐसी मिसाल देखने को देखने को नहीं मिलती है। इस सभ्यता की सीवर प्रणाली बहुमंजिला इमारतों से दीवार के सहारे एवं शहर के सीवर सिस्टम से मिलता था।

 

By Diyansh

दिव्यांश हिंदू कॉलेज के हिंदी प्रतिष्ठा के विधार्थी हैं। दिव्यांश के मुख्य रुचि के छेत्र साहित्य, कला, इतिहास एवं प्राकृति हैं। इसके अतरिक्त आप कुशल वक्ता एवं प्राकृति प्रेमी हैं।

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